गोविंदा-आला रे-आला जरा मटकी संभाल बृजबाला गुंजा आमला धूमधाम से आमला में मनाया गया श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व
मंदिरों में भव्य सजावट और पालकी उत्सव
आमला। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व इस बार अद्भुत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। शहर के प्रमुख मंदिरों में खास सजावट की गई और जगह-जगह कृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन हुआ। इतवारी चौक स्थित प्राचीन श्रीकृष्ण मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों से सजाकर आकर्षक रूप दिया गया। मंदिर समिति द्वारा बालगोपाल की पालकी बड़े ही भव्य रूप से निकाली गई, जिसमें भक्तगण “हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की” के जयकारों के साथ शामिल हुए। कसारी मोहल्ला स्थित राम मंदिर प्रांगण में भगवान को पालने में बिठाकर विशेष पूजा अर्चना की गई। भक्तजन देर रात तक भजन-कीर्तन और संगीतमय संध्या में झूमते नजर आए। शहर की गलियों और मोहल्लों में भक्तिरस का ऐसा वातावरण बना कि हर कोई कृष्णमय हो गया।
गोविंदा, मटकी फोड़ और राधा-कृष्ण रूप सज्जा
शहर के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी जन्माष्टमी का पर्व उल्लासपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ। परंपरागत ढंग से गोविंदाओं ने मटकी फोड़ प्रतियोगिता में भाग लिया और इस खेल को देखने हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी। गीतांजलि चौक, मेनरोड, बोड़खी सहित विभिन्न स्थानों पर भंडारे और प्रसादी का आयोजन हुआ, जहां भक्त बड़ी संख्या में पहुंचे। बच्चों की राधा-कृष्ण वेशभूषा ने पूरे नगर का मन मोह लिया। सुबह से ही गलियों में छोटे-छोटे नंदलाल और राधा के रूप में सजे बच्चे नजर आए, जिनके दर्शन कर लोगों को ऐसा लगा मानो स्वयं भगवान कृष्ण और माता राधा नगर में पधार गए हों। वहीं युवाओं ने भक्ति गीतों और झांकियों के माध्यम से कृष्ण चरित्र का प्रदर्शन किया, जिसे देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
वासुदेव की कथा और कृष्ण आराधना
जन्माष्टमी की रात श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की लीलाओं का स्मरण किया। मंदिरों में भगवान के जन्म की घड़ी जैसे ही आई, वैसे ही शंख, घंटों और जयकारों से वातावरण गूंज उठा। विशेष रूप से वासुदेव जी द्वारा सर पर शिशु कृष्ण को लेकर यमुना पार करने की झांकी का मंचन किया गया, जिसने उपस्थित भक्तों को भक्ति और आस्था के सागर में डुबो दिया। भारी वर्षा के बीच वासुदेव जी का यह पात्र नगरवासियों के लिए कृष्ण भक्ति का सर्वोत्तम प्रतीक बना। इस दौरान श्रद्धालुओं ने वासुदेव की निष्ठा और बालगोपाल की दिव्यता का भावपूर्ण दर्शन किया। पूरी रात मंदिरों में भजन, कीर्तन, झांकियां और प्रसादी का आयोजन चलता रहा। जन्माष्टमी का यह पर्व न सिर्फ धार्मिक आयोजन रहा बल्कि नगरवासियों के लिए सामाजिक एकता और भक्ति का महोत्सव भी सिद्ध हुआ।
Author: Ibn 24 Bharat
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